बाल कविता : रेल
बाल कविता: रेल
छुक छुका छुक रेल चली,
दो- सौ डिब्बे जोड़ चली।
गिरता सिग्नल रेल आई,
टिकट लेकर बैठो भाई।
लोहे के पहिये, लोहे की कुर्सी,
चढ़ो जल्दी दिखाकर फुर्ती।
आगे आगे पटरी जाए,
रेल उसपर दौड़ लगाए।
पोपो पोपो सीटी बजाती,
काला काला धुंआ उड़ाती।
रुकती जब स्टेशन आता,
सफर रेल का सबको भाता।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन