बाल कविता: मुन्नी की मटकी
बाल कविता: मुन्नी की मटकी
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हुआ सवेरा मुन्नी जागी,
पानी लेने कुएं पर भागी।
रस्सी बांधी मटके में,
मटका टूटा झटके में।
देखकर मटका मुन्नी रोयी,
सुधबुध उसने अपनी खोयी।
लौट के मुन्नी घर को आयी,
सारी बात माँ को बतायी।
माँ बोली- “मत घबरा प्यारी”
घर मे मटकी बहुत सारी।
दूसरी मटकी ले जाना,
फिर से पानी भर लाना।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन