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30 Jul 2020 · 1 min read

बाल-कर्मवीर

जागें हैं जो गहरी निद्रा से आज,
कल उनको फ़िर से सो जाना है।

फ़िर से किसी टपरी, भट्टी या होटल में,
किसी नन्हें श्रमिक को नज़र आना है।

उनके पेट की जलन को बुझाये कौन?
उन्हें तो बिन अन्न भूखे ही मर जाना है।

यदि न करें बाल श्रम तो यक़ीनन उन्हें,
भिखारी लिबाज़ में सड़क पर खड़े हो जाना है।

किसी सत्ताधारी के हाथों से बदलती नहीं
उनके हथेलियों की लक़ीरें,
हाँ नन्हें कर्मवीरों की विवशता को फ़िर से
सबको भूल-विसर जाना है!

यही है यथार्थ और यही समाज का दर्पण
“हृदय” क्या कहना सुनाना है,
हर दुष्कर्म और अन्याय है चरमसीमा पर
लाया गया ऐसा ज़माना है!
-रेखा “मंजुलाहृदय”

Language: Hindi
8 Likes · 3 Comments · 368 Views
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