बालगीत
हम सोयेंगे
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माई माई
बिछा चटाई
हम सोयेंगे
मौसम है कुछ
ठण्डा-ठण्डा
आज न होगा गिल्ली-डंडा
मत सुलगाओ
घर में कंडा
आज नहीं खायेंगे अंडा
माई माई
उढ़ा रजाई
हम सोयेंगे
पता नहीं क्यों
सता रही है
रुला रही है कल से सरदी
लगी धूप की
चाल नटखटी
नहीं सुखाती गीली वरदी
माई माई
ठंड कसाई
हम सोयेंगे
पैदल पैदल
सूरज चाचा
नाक चढ़ाये छत पर आये
कई दिनों से
भूख लगी थी
चोखा मकुनी छक-छक खाये
माई माई
खिला मलाई
हम सोयेंगे
आये हैं कुछ
गंगासागर
लेकर काँवड़ बनकर बादल
लगा सजाये
हैं आँखों में
इन्द्रनील का सुरमा-काजल
माई माई
छोड़ बुनाई
हम सोयेंगे
प्यारे ! पुत्तन !!
कुछ भी खाओ
जितना सोना हो सो जाओ
पापा हैं अब
आनेवाले
ना खाना हो मुँह जुठियाओ
बेटा ! बेटा !! छोड़ ढिठाई
हम सोयेंगे
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ