बालक की पीड़ा
बालक की पीड़ा_
माँ तुम व्यस्त रहती हो हमेशा|
हमने तुमको ऐसा ही देखा|
कभी तो बैठ के दुलारो तुम|
हमारा जीवन प्यार से संवारो तुम|
झुंझलाहट को दूर कर प्यार से समझाओ तो|
ओ माँ एक बार माँ बनकर घर आओ तो|
कैसा है तुम्हारा अधिकारी,
जो गई है उसकी मति मारी,
क्यों अपने उलझे व्यवहार से
दूर कर रहा एक बालक से
उसकी प्यारी महतारी|
डा पूनम श्रीवास्तव वाणी