बारिश
बारिश
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उम्मीद का बादल अधर में,
पर बारिश कहाँ है, कहाँ चैन दिल में।
मैल मन का धुलता यदि न ,
होता है फिर सुर्ख़ नैन तन में।
नीर बिनु बैचेन धरा है,
घूमड़त अभ्र जो हो अतिश्यामल।
बूंद बूंद को प्यासी धरा है ,
पावस चक्षु है निर्जल घन में ।
जाके मन बसत सांवरिया,
गरजत नहिं वो फिर मेह बिजुरिया ।
टपकत अक्षुनीर हर पल,
नेह लगावत करजोर अंजुरिया।
प्रेम रस सम अमृत अनन्त है ,
पावस सजल नयन इस जग में।
तरसत मन, व्यथित अब हो न ,
छेड़ो ना मन की तान मुरलिया।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि –०५ /११/२०२२
कार्तिक,शुक्ल पक्ष,द्वादशी , शनिवार
विक्रम संवत २०७९
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