बारिश
तपिश धरती की दूर भगाए,सबका मन ठण्डा कर जाए।
कागज की कश्ती की याद दिलाए, गर्मी से आराम कराए।
सोंधी-सोंधी ख़ुशबू मिट्टी की,मानो मिट्टी से प्रेम करना सिखाए।
चारों और हरियाली देख,पर्यावरण की शोभा बढ़ाए।
बारिश की मस्ती में देखो झूमा सारा आलम, मृग भी नाच रहे होंगे वन मे कह रहा ये बादल।।
बस बरसाना ऐसा नीर,सुख से बीते सबके दिन।
बंजर को आबाद यू करना,भुखा न रहे अबकी बार कोई गरीब।
छत सबकी आबाद रखना,किसी का भी नुकसान न करना।
फंदा किसी के गले न आए,किसानों को ऐसा न दिन दिखलाए।
खेत उनके हमेशा लहराए,त्योहार प्रफुल्लित हो कर वह भी मनाए।
भारती विकास(प्रीति)