बारिश की एक शाम
आओ ! आपको सुनाए ,
एक दास्तान अपनी हम ।
एक रोज बरस रही थी ,
बारिश बहुत झमाझम ।
विद्यालय से जब निकले थे,
तब तो नहीं था ऐसा मौसम ।
आधे रास्ते पर पहुंचे ही थे,
शुरू हो गई बूंदाबांदी एकदम ।
सोचा ! कोई बात नहीं चलेगा!
दौड़कर पहुंच जायेंगे अपने धाम ।
मगर यह क्या हुआ अचानक ,
यकायक शुरू हो गई यह” मेडम “।
अब हमारे पास न छाता ना बरसाती,
क्या करें ,कहां जाए हम ?
राह में ना पेड़ न कोई आसरा ,
जहां सर छुपा सकें कुछ दम ।
दौड़ भी न पाए चल भी न पाए ,
पानी घुटनो तक भर गया हे राम !!
राह भी कोई सूझ नहीं रही थीं,
सड़क और नाड़ा दिख रहे थे एक समान ।
फिर भी हिम्मत करके राम को याद कर ,
अपने अंदाज से चले जा रहे थे हम ।
सड़कें एकदम सुनसान थी ,
दिख नहीं रहा था कोई वाहन ।
किसी तरह पैदल ही भीगते हुए ,
अपने घर पहुंचे आखिरकार हम ।
देखा हमने राह में नजर टिकाए ,
हमारे इंतजार में खड़े थे परिवार जन ।
और पीछे से पिता भी दिखे आते हुए ,
सहसा चकरा गए हम ।
“”पापा आप !”” हमने पूछा ,
“तुझे ढूढने ही निकले थे हम “”।
मगर तूने देखा नहीं ,हमने बहुत पुकारा,
ना जाने तू किन खयालों में थी गुम ।
और हम क्या करते , तेरे पीछे चलते रहे ,
मिलाकर तूझसे कदम से कदम ।
सुनकर दिल हमारा भर आया ,
माता पिता ने हमें गले लगाया एकदम ।
फिर मां हमें अपने कमरे में ले गई ,
कुछ मिनटों में तैयार होकर आ गए हम ।
फिर मां ने सब के लिए पकोड़े ,
बनाए स्वादिष्ट गर्मागर्म ।
इस घटना को गुजरे हो गए बहुत वर्ष ,
मगर अब भी नही ,या शायद कभी नही ,
भूलेंगे बारिश की वो शाम