“बारिश का वो दिन”
बरसात के पश्चात बादल अभी भी घिरे हुए थे ।करीब दो घंटे पहले लग रहा था कि एक डेढ घंटे में बारिश थम जाएगी पर इतनी देर तक बरसने के बाद भी मौसम पहले जैसा था।वो दीवार की ओट में खड़ा था टूटे और फटे छाते होने के कारण वो काफी भीग चुका था।सविता ने सुबह कहा भी था कि ऑफिस निकलते हुए नया छाता निकाल लेना पर सुबह की जल्दबाजी में सब भुला दिया और अब इतना समय बीतने पर भी प्रशांत पूर्णतया भीग चुका था।कई मर्तवा घड़ी देखने पर भी समय ज्यों का त्यों लग रहा था।कितनी महत्वपूर्ण मीटिंग जो आज 2 बजे है शायद रद्द ही हो जायेगी क्योंकि साढ़े बारह बज चुके हैं पर बारिश है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही है लगता है इस महीने
भी टारगेट पूरा नहीं हो सकेगा।बाॅस इतनी बार कह चुके हैं कि यदि टारगेट पूरा नहीं हुआ तो नौकरी गयी ही समझो।अब क्या होगा कैसे टारगेट पूरा होगा इसी फिक्र में जाने कितनी बार आंखे कलाई पर बंधी घड़ी की ओर जा रही थी।कमीज भी पूरी तरह भीग चुकी थी अब तो मीटिंग हाथ से गयी।कमबख्त मोबाइल भी नहीं मिल पा रहा लगता है आज सबकुछ मेरे खिलाफ है पर अब क्या होगा।अनिश्चित मन से वो इधर ऊधर देख रहा था………..
मनोज शर्मा