बाबूजी का श्राद्ध
बाबूजी का श्राद्ध
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बाबूजी के श्राद्ध पर
पंडित जी बोले,
सुनो जजमान,
जो बाबूजी खाते थे,
वही बनवाना पकवान।
यदि कुछ कमी रही तो,
बाबूजी की आत्मा अतृप्त रह जाएगी।
और उनका आशीर्वाद न मिला,
तो तुम्हारी भी बरक्कत रुक जाएगी।
श्राद्ध के दिन थाली में सजे थे ढेरों पकवान।
चखते चखते पंडित जी भी थे हैरान।
बोले, अरे ये क्या जजमान
न सब्जी में नमक, न खीर में मीठा, न तड़का, न छौंका।
थाली में हैं छत्तीस व्यंजन, लेकिन सब फीका फीका।
क्यों पंडित को सताते हो,
यदि खिलाने का मन नहीं,
तो क्यों बुलाते हो।
तुरत हाथ जोड़ कर बोला जजमान।
ऐसी बात नहीं है श्रीमान।
हमारे बाबूजी डायबिटीज और ब्लड प्रैशर के मरीज थे।
नमक और चीनी दोनों का परहेज रखते थे।
यदि फीका न बनाते तो बिना खाये चले जाते।
और सब कुछ करने के बाद भी पितर अतृप्त रह जाते।
पंडित जी निरुत्तर हो चुपचाप खाने लगे।
खा पीकर, डकार मारकर मूँछें सुखाने लगे।
तभी गिलास में पानी लेकर फिर आया जजमान
बोला ये गोलियाँ भी गटकिये श्रीमान।
हमारे बाबूजी रोज दवा की ये गोलियाँ खाते थे,
और पूरा दिन आराम से बिताते थे।
गोलियाँ देखकर पंडित जी के पसीने छूट गये।
चुपचाप अपना थैला उठाकर नौ दो ग्यारह हो गये।
जजमान पीछे से चिल्लाया, रुकिए पंडित जी, दक्षिणा तो ले जाइए।
और आशीर्वाद भी दे जाइए।
भागते भागते पंडित जी बोले, मुझे दूसरी जगह भी जाना है।
कुछ और पितरों को जिमाना है।
तुम दक्षिणा मंदिर में दे जाओ,
साथ में गोली का पत्ता भी हनुमान जी के चरणों रख आओ।
पितर भी वहीं पहुँच जाएंगे,
और सच मानो, आशीर्वाद भी दे जाएंगे।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
17.09.2019