बाबूजी।
बाबूजी।
मेरे लिए सबकुछ सह लेते हैं बाबूजी
बिना कहे सबकुछ कह लेते हैं बाबूजी।
अपने हिस्से की दे दी हर खुशी मुझे पर
स्वयं दर्द के दरिया में बह लेते हैं बाबूजी
मेरी राहों को रौशन किया हरदम लेकिन
खुद अँधेरे में कैसे रह लेते हैं बाबूजी।
न जाने किसकी नजर लगी है घर को
अब दवाएँ जिस तरह लेते हैं बाबूजी।
a m prahari