बाबा मुझे पढ़ने दो ना।
बाबा मुझे पढ़ने दो ना,
पंख लगाकर उड़ने दो ना।
अज्ञान के भय से निकलना चाहूं,
ज्ञान की राह पर मैं चलना चाहूं।
छोड़कर फिक्र जमाने की मैं,
अब अपनी राह पकड़ना चाहूं ।
बाबा मुझे बढ़ने दो ना,
पंख लगाकर उड़ने दो ना।
कब तक बोझ बनू मैं सब पर,
स्वावलंबी अब बनना चाहूं।
बाहर कि मैं देखूं दुनिया,
अपनी पहचान बनाना चाहूं,
बाबा जग देखने दो ना,
पंख लगाकर उड़ने दो ना ।
खुद की रक्षा करनी मुझको,
रक्षण-शिक्षा लेना चाहूं।
अफसर बिटिया बनना मुझको
कलम की ताकत देखना चाहूं।
बाबा कुछ बनने दो ना,
पंख लगाकर उड़ने दो ना ।
नाम आपका रोशन कर दूं,
कुल-दीपिका मैं बनना चाहूं।
खुशियों की मैं झड़ी लगा दूं,
सामर्थ्य आपका बनना चाहूं।
बाबा मुझे अवसर दो ना,
पंख लगाकर उड़ने दो ना ।
घर में सब का ध्यान मैं रखती,
अब देश की सेवा करना चाहूं।
पकड़ के दामन संस्कारों की,
अब अपना फर्ज निभाना चाहूं।
बाबा मुझे साहस दो ना,
पंख लगाकर उड़ने दो ना।
लक्ष्मी वर्मा ‘प्रतीक्षा’
खरियार रोड ओड़िशा।