– बाप व्यभिचारी बेटे लाचार –
बाप व्यभिचारी बेटे लाचार –
एक पिता की कुनीति के उसके बेटे हुए शिकार,
न कुछ कह पाए पिता को,
न ही विरोध कर पाए,
दो बेटो की शादी कर दी ,
उनको दिया उलझाए,
एक बेटा था भरत सा जो मां के कहने पर घर परिवार की जिम्मेदारी उठाए, कल दिन सुधर जाए,
दिनो दिनो जब बीत चुके जो,
हो गए हालात खराब,
बेटे ने ना ढंग का कपड़ा पहना ,
न कोई शौक मौज कर पाए,
उसका बचपन ऐसे गुजरा और जवानी गुजरी जाए,
आया जब समय बेटा अपनी बात रख जाए,
मुझे अब व्यवसाय लगाना,
कुछ धन दिया जाए,
सब मुकर गए और मां भी ,
भाई स्वार्थी हो जाए,
भाईयो को चाहिए हिस्सा छोटे का,
नीयत खराब हो जाए,
ऐसे जब छोटे का त्याग व्यर्थ चला जाए,
क्योंकि बाप जब हुआ व्यभिचारी बेटे लाचार हो जाए,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान