बापू
देश सिसकता था पीड़ित हो
गोरों के हाथों में जान।
कसक रही थी भारत माता
अपने सुत का यों दुख जान।
उन अत्याचारों को तुमने,
बातों ही बातों में रोका।
गोली चलती थी उनकी तो,
आजादी का चाकू भौंका।
फौज चली वो संगीनों में,
तुम थे सत्याग्रह के बस में।
उन पर बल था बंदूकों का,
तुम थे बस लाठी की सह में।
जग तुमको बापू कहता है,
मानवता के तुम रक्षक थे।
दलितों के थे तुम रखवाले,
सत्य अहिंसा के पोषक
बिरला हाउस पर नाथू ने,
बापू की छाती छलनी की।
हाय तनिक भी लाज न आयी,
माता की गोदी सूनी की।
एक धर्म मानव की सेवा,
बापू ने सबको बतलाया।
क्षमा दया जीवन का सत है,
जन-जन में ये अलख जगाया।