बापू फिर से आ जाओ
चीख उठी है धरती सारी, घायल है मानवता
छाए हैं आतंक के बादल, जाग रही बर्बरता
बापू फिर से आ जाओ, दुनिया में अलख जगा जाओ
छूट रही है सत्यअहिंसा, फिर से इसे जगा जाओ
धरती हो आतंक मुक्त, ऐसी हवा चला जाओ
कहीं जाति धर्म के झगड़े हैं, दुनिया में कितने पचड़े हैं
मंदिर में बम फट जाते हैं, मस्जिद में मारे जाते हैं
हिंसक हो जाते गुरुद्वारे, गिरजे भी जल जाते हैं
हे बापू फिर से आ जाओ, ऐसी समरसता फैलाओ
लगी हुई है आग पाप की, फिर से इसे बुझा जाओ
छूट रही है सुचिता मन की, खबर नहीं है जीवन धन की
दौड़ रहा है धन के पीछे, खबर नहीं है अपने तन की
भ्रष्टाचार फैला सुरसा सा, बापू इसे मिटा जाओ
बापू फिर से आ जाओ
बढ़ते हुए उपभोक्तावाद ने, दुनिया को बहुत सताया
ग्राम स्वराज्य का सपना बापू ,नक्शे में ना आ पाया
ऐसा बड़ा प्रदूषण जग में, जहर हवाओं में आया
एक घूंट पानी भी बापू, शुद्ध नहीं बच पाया
बापू फिर से आ जाओ, आकर इन्हें बचा जाओ
बापू मैं यह प्रण लेता हूं, मैं सुचिता सदा रखूंगा
अपने तन मन धन से, देश की सेबा सदा करूंगा
जाति धर्म भाषा अंचल पर, अब मैं नहीं लडूंगा
देश और दुनिया में, मानव कल्याण करुंगा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी