बापू तू तो कल्पवृक्ष है
दुनियाँ में तू लेकर आया,
तू है मेरी फिदरत सा।
बापू तू तो कल्पवृक्ष है,
बिलकुल बूढ़े बरगद सा।
सिर रख कर गोदी में जब,
मैं आकर सो जाता हूँ।
मिट जाता दुख दर्द सभी,
भान तेरा जब पाता हूँ।
जब भी तेरा चेहरा देखूँ ,
रब का रूप झलकता है।
गुस्सा में भी बापू तेरी,
हर दम प्यार बरसता है।
तू ही राह दिखाता मुझको,
तू ही मेरी हिम्मत है।
सबक सिखाकर बापू तूने,
लिक्खी मेरी किस्मत है।
तेरी छाया तले सभी सुख ,
मिलता मुझको जीवन का ।
बापू तू तो कल्पवृक्ष है,
बिलकुल बूढ़े बरगद सा।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’