बापू की राह अहिंसा की
छंद-द्विगुणित पदपादाकुलक (राधेश्यामी) चौपाई
विधान- 16,16 आदि गुरु एवं अंत दो गुरु, द्विकल से आरंभ हो तो
बाद में दो त्रिकल या दो चौकल हों तो अच्छा.
पदांत- हैं
समांत- अलते
बापू की राह अहिंसा की, जन-जन हिंसा में पलते है.
रातें बेचैनी में कटती, नित दहशत में दिन ढलते है.
पहचान नहीं कपड़ों से हो, पहचान चरित्र से हो सबकी,
बापू के ये अनमोल वचन, उम्मीदों को बस छलते है.
है आज अहिंसा दिवस मगर, नहिं संभव हो न कहीं हिंसा,
कब पूरे शिक्षित होंगे हम, यह स्वहप्न हमें अब खलते है.
जब जात-पाँत, आरक्षण हो, हो राजनीति जब वोटों की,
अपना-अपना जब स्वार्थ पले, संधान प्रगति के टलते हैं.
हे बापू, तेरा भारत अब, जब-तब ही करता याद तुझे,
कुछ ही गाँधीवादी हैं जो, तेरे रस्ते पर चलते हैं.