चली ⛈️सावन की डोर➰
बादल गरजा,
मिजाज,
मौसम का बदला,
बदलाव दिखे हर ओर,
चली सावन की डोर।
दादूर-टर्टराहट,
बगुले बहुतायत,
आस-पास,
जलाशय-किनारे का शोर,
सरर •••• समीर,
कुसुमरस घोल,
चली सावन की डोर।
चिं-चिं चिड़िया उड़ चली ,
पंख- चञ्चु खोल,
बयार संग,
प्यारी-प्यारी ,
पाकर हिचकोल।
चली सावन की डोर।
हिरन,
निहारते अम्बर,
अम्बरतल,
गज,
गजभर चलते,
धरती को तोड,
मगन गगन संग,
बढने की होड,
चली सावन की डोर।
वानर ,
वन-विटप शाखों को,
नाचे – कूदे,
दे झकझोर,
विवर-गृहों से निकल आये,
मूषक-छछूंदर ,
सर्प बहु ओर,
चली सावन की डोर।
श्यामल-श्याम,
श्यामलता सी लिपट गयी,
दश-दिश ,
अंग-अंग,
अंधकार रंग घोल,
चली सावन की डोर।
रसिक वर्ग की,
हंसी-ठिठोली,
ठिठुरते अनुभाव,
विभाव-रसाभास,
झम-झम बूँदों की,
शीतलता में विभोर।
चली सावन की डोर।
शीतल-श्लिष्ट,
भुजलता में ,
घन-केशपाश,
उच्छ्वास-श्वासों में,
प्रेम ताप संयोग।
चली सावन की डोर।
इत्र आकर्षित,
चित्त चंचल हुआ,
प्रिय-संगम में उत्सुक ,
व्रीडा-बंधन स्वयं खुला,
गाढ़ आलिंगन में,
अंगना-अंग साजन सराबोर,
चली सावन की डोर।।