*बादलों की दुनिया*
देखी है धरा पर एक दुनिया
एक दुनिया समंदर में है
इसके अलावा है एक और दुनिया
जो बादलों के बीच आसमां में है
है ऊंचे ऊंचे पहाड़ इसमें
हिमालय को जो बौना दिखाए
पड़ती है जब सूर्य की किरणे इनपर
चमक से इनकी आंखें चुंधियाएँ
आते हैं जब इस दुनिया में
धरा नहीं दिखती कहीं भी
दिखते हैं बस बादल और बादल
चाहे निगाह डालो कहीं भी
सफ़ेद बादल लगते हैं मानो
बर्फ की चोटियों के जैसे
है ये दृश्य मनोरम यहां का
भण्डार हो रूई का जैसे
जहां तक नज़र जा रही है
बस दिख रहे हैं बादल चारों ओर
पहुँचकर ऊँचाई पर हो गए है स्थिर
छोड़ दी है चंचलता सम्भाल लिए है छोर
जाने क्या बात होती होगी जब
ये आपस में टकराकर पानी बहाते हैं
इतने से भी बात नहीं बनती जब
फिर बिजली से हमें डराते हैं
है ये दुनिया भी समंदर की दुनिया की माफ़िक
लेकिन कोई जीवन नहीं पलता बादलों में
मगर होती न ये दुनिया बादलों की तो
बारिश के बिन कभी कोई जीवन न पलता धरा में।