बात ये सच है
बात ये सच है कि मैं हद से गुज़र जाऊँगा
वो अगर फिर भी न माने तो किधर जाऊँगा
मुझसे नफ़रत है तो मत खोल ये पलकें अपनी
आँख के रास्ते मैं दिल में उतर जाऊँगा
साथ चलती हैं मेरी माँ की दुआएँ हर पल
“मैं जिधर जाऊँगा बेख़ौफ़ो ख़तर जाऊँगा”
मैं हिना हो के यही सोच रहा हूँ कब से
वो हथेली पे रचा लें तो निखर जाऊँगा
चाँद सूरज ही बनूँ, ऐसी तमन्ना तो नहीं
शाम ढलने दे सितारों सा संवर जाऊँगा
मैं वो ख़ुशबू हूँ मोहब्बत की महक है जिसमें
रास्ते ख़ुद ही पता देंगे जिधर जाऊँगा
फिर ‘असीम’ आ के मुझे कौन सी हद रोकेगी
बाद मरने के हवाओं में बिखर जाऊँगा
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’