बात तो कद्र करने की है
बात तो कद्र करने की , कद्र होने की है।
किसी को पाने की ,किसी को खोने की है
क्यों चिल्ला चिल्ला कर लेते हो नाम मेरा
बात तो मेरे होने या न होने की है ।
ख्वाब तेरे टहलते हैं ,दिल की मुंडेर पर
बात आंख लगने या मेरे सोने की है।
क्यों बार-बार गरजते हैं मेघ की तरह
बात बदन की नहीं ,आंख भिगोने की है।
कितनी दूरियां बढ़ जाती है साथ साथ चलते
बात तो साथ हो कर भी ,साथ न होने की हैं
सुरिंदर कौर