बात चले
पाँव आहिस्ते से रखकर मेरे जज़्बात चले
आँखें खुली रहीं और सामने मेरे रात चले
बारात तारों की लेकर घूम रहा है चंदा
सूरज निकले तो मेरी भी कोई बात चले
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
पाँव आहिस्ते से रखकर मेरे जज़्बात चले
आँखें खुली रहीं और सामने मेरे रात चले
बारात तारों की लेकर घूम रहा है चंदा
सूरज निकले तो मेरी भी कोई बात चले
-सिद्धार्थ गोरखपुरी