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21 Jul 2021 · 7 min read

बात उस रात की

बात उस रात की
डॉक्टर शशांक को हांसपिटल में आए हुए अभी हुए दो ही महीने हुए थे। उसी समय कोविड के मरीजों की तादाद भी बढ़ने लगी। डा. शशांक बड़ी तत्परता से अपनी ड्यूटी को अंजाम देते थे लेकिन पेशेंट देखने मे डा.शशांक व अन्य सहयोगियों को दिन- रात ड्यूटी करनी पड़ती थी। दिन में ओपीडी और रात में नाइट ड्यूटी। इतने बड़े अस्पताल में इलाज के लिए सभी संसाधन मौजूद होने के बावजूद,स्टाफ व संसाधनों का बहुत अभाव था।
डा. शशांक एस आर के लिए नए-नए चयनित होकर आए थे। इस समय डा.शशांक की नाइट ड्यूटी आईसीयू में लगा दी गई । रोज की तरह डॉ शशांक पीपीई किट पहनकर आईसीयू में अपनी ड्यूटी कर थे।
आईसीयू वार्ड मे बारह मरीज थे। जिसके मेन हेड डॉ शशांक ही थे। उनमें से एक पेशेंट मि. अरुण थे। उनकी उम्र पैंतिस से छत्तीस साल की रही होगी।वह भी कोरोना पॉजिटिव थे। वह 20 दिन से आईसीयू में हीं एडमिट थे। अभी तक उनकी हालत पूरी तरह से क्लियर नहीं हुई थी। समय-समय पर उनको अस्थमा अटैक होता तब उनकी हालत काफी नाजुक हो जाती थी। उनको दो बेटियां थी। वैसे भी किसी अटेंडेंट व बच्चों को हॉस्पिटल में आना मना था, फिर भी उनकी पत्नी पूरी सावधानी के साथ हॉस्पिटल आती थी। उस दिन जिद करके उनकी छोटी बच्ची परी भी उनके साथ आई। वह दूर से ही अपने पापा को देखकर खुश होकर भी निराश हो गयी। उनकी छोटी बेटी मात्र 4 साल की थी। इतनी प्यारी व समझदार, उसे देखकर यह लग रहा था कि भगवान ने इसके साथ इतना अन्याय क्यों किया? उसकी उसकी पप्यार,, मनमोहिनी सूरत देखकर देख कर कोई आकर्षित ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता वह सकता था। वह नाम के अनुरूप ही परी लगती भी थी। अपने पापा को इस हाल में देखकर वह बहुत रोई। जब भी कोई आईसीयू से बाहर निकलता तो वह झट से दौड़ कर पूछने लगती- “ डा.अंकल…..डा. अंकल मेरे पापा ठीक तो हो जाएंगे। आपकी उनसे बात हुई ।“
डॉक्टरों का भी नपा-तुला लाजवाब होता है- “हां….. हां बेटा, तुम्हारे पापा बिल्कुल ठीक है।वह जल्दी ही अच्छे हो जाएंगे।“
डॉ शशांक को आईसीयू से निकलते देख,वह दौड़ कर उनके पास आ गई। उसे उसे पास आते देखकर डॉक्टर शशांक बोल पडे-“अरे! यह किसकी बच्ची है। इसे संभालो । बेटा,प्लीज मुझसे दूर रहो।“
जब तक उसकी मां उसे पकड़ती ,तब तक वह हाथ जोड़कर सिसकते हुए कहने लगी- “प्लीज डॉक्टर अंकल! मेरे पापा को जल्दी अच्छा कर दीजिए। उन्हें बोल दीजिए उनकी परी आई है। मैं यहां इंतजार कर रही हूं।“
उस बच्ची के मुख से दयनीय स्वर में रिक्वेस्ट सुनकर शशांक का दिल भर आया। वह मास्क के अंदर मुस्कुराते हुए –“हां बेटा वह बहुत जल्दी अच्छे हो जाएंगे। मैं उनसे बता दूंगा कि आपकी परी आपका इंतजार कर रही है। परी बेटा मुझसे प्रामिस करो कि आज के बाद तुम यहां नहीं आओगी। तुम्हारे पापा जल्दी अच्छे हो जाएगी तो खुद घर आयेंगे। तुम्हें देखकर तुम्हारे पापा को बहुत दुख होगा दुख होगा।“
“ प्लीज……. मुझे मिला दीजिए मेरे पापा से।“
“ बेटा, वहां कोई नहीं जा सकता।“तब तक उसकी मां हाथ पकड़ते हुए –“सांरी, डॉक्टर बच्ची है, नहीं मानती है। अपने पापा से बहुत प्यार करती है। आज यह जिद करके यहां आ गई।“
“ इट्स ओके।“ कोई बात नहीं
उसकी मां बच्ची को गोद में उठाकर ले जा रही थी तब उसका रूदन सुनकर डॉ शशांक का कलेजा भी कांप गया।
डॉ शशांक मरीजों को देखकर उन्हें सांत्वना और हिम्मत बंधाते जा रहे थे। आपको जल्दी ही छुट्टी मिल जाएगी। अन्य मरीजों के साथ उन्होंने अरूण को भी देखते हुए-“ आज आप ठीक लग रहे हैं। ऐसी तबियत रही तो कल आपकी छुट्टी हो जाएगी। उन्होंने कुछ नार्मल बात भी की।
आज डॉक्टर शशांक की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी…. लेकिन ‘ड्यूटी इज ड्यूटी ‘ऐसे विकट हालतों में छुट्टी लेना उन्हें मुनासिब नहीं लगा।
कुछ समय बाद सिस्टर डॉक्टर शशांक के पास आकर-“ डॉक्टर साहब ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो गई। पेशेंट की हालत गड़बड़ हो रही है। डॉ शशांक के माथे पर बल पड़ गए । वह घबराते हुए –“ ऐसा कैसे हो सकता है?”
डॉ शशांक ने तुरंत अपने हेड सर को सूचना दी। उन्होंने बताया कि हांस्पिटल में ऑक्सीजन सप्लाई समाप्त हो गई है। तब तक कुछ सिलेंडर का इंतजाम हो रहा है, लेकिन वह भी पर्याप्त मात्रा में नहीं है। कोविड के कारण आक्सीजनर सिलेंडर मिलने में परेशानी हो रही है। जब तक ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं होता है तब तक आप किसी तरह से आप मैनेज करिए।“
यह सुनकर डॉ शशांक के हाथ- पांव फूल गए। कहने को तो हेड सर ने कह दिया था कि आप मैनेज करिए, लेकिन मैं मैनेज करूं तो कैसे ?क्योंकि आक्सीजन इतनी आवश्यक है कि उसके बिना तो कुछ भी संभव ही नहीं और वह अपने वार्ड में पेशेंट को तड़पता हुआ नहीं देख पा रहा था। वार्ड में अफरा-तफरी मची थी। पेशेंट तड़प रहे थे। शशांक की समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करें? फिर भी उसने मरीजों को दिलासा देते हुए , उसने नर्स वह अपने अन्य सहयोगियों से कहा-“खिड़कियां खोलकर मरीज की पीठ थपकी दो। तुम मरीजों को पेट के बल लिटा कर, गहरी सांसे लेने का प्रयास करो ।“
इधर उसने देखा अरुण की सांसें उखड़ रही है। उसका आक्सीजन लेवल नीचे जा रहा था। अभी कुछ समय पहले तो वह ठीक था ।अब यह एकाएक यह कैसे हो गया? यह देखकर वह घबरा गया। उसके सामने उसकी बेटी का चेहरा घूमने लगा,जो उससे पूछ रही थी-“डॉ अंकल ! मेरे पापा को जल्दी से ठीक कर दो।“ उसका मासूम सा चेहरा मैं कैसे फेस कर पाऊंगा?
डॉ शशांक को पहली बार, ना जाने क्यों उस बच्ची से इतनी आत्मीयता महसूस होने लगी। उसने मन में ही कहा….. नहीं ….. नहीं अरुण को कुछ नहीं होगा। तभी उसे याद आया क्यों ना प्रोनिंग तरीके से अरुण का ऑक्सीजन लेवल मेंटेन किया जाए। शशांक ने एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान यह तरीका सीखा था। उसने अपने स्टाफ से कहा कि मैं जैसा कर रहा हूं आप लोग भी वैसा ही मरीजों के साथ करिए।वह यह तरीका अरुण पर आजमाना चाहता था, …….अगर कहीं कुछ गलत हो गया तो……मेरी नौकरी जा सकती है। अपने मन में आए हुए ख्याल को झटकते हुए -नहीं कुछ नहीं होगा। पहले भी तो ऐसे ही इलाज होता था। प्रयास करने में क्या हर्ज है। हम डॉक्टरों का फर्ज है किसी भी तरीके से मरीज को बचाया जा सकता है तो उसे बचाने का प्रयास करना चाहिए। मुझे भी वही कोशिश करनी है।….. नहीं कुछ नहीं होगा। मैं डॉक्टर हूं……. प्रयास करना मेरा काम है। अरूण को जरूर फायदा होगा। वह अरुण को पेट के बल लिटाकर प्रोनिंग की प्रक्रिया के तहत आक्सीजन की कमी को पूरा करने की कोशिश करने लगा।
डा. शशांक को देखकर स्टाफ के अन्य लोगों ने भी वही प्रक्रिया दोहराना शुरू किया। मरीज की सांसे धीरे-धीरे काबू में आने लगी।
उसने वार्ड ब्याय को बुलाया था लेकिन वह अभी तक वार्ड में नहीं आया था। ऑक्सीजन के बारे में कोई सूचना भी नहीं मिली थी।
शशांक बार-बार अरुण को पेट के बल लिटाकर पीठ पर हलका प्रेशर देकर ऑक्सीजन मेंटेन करने की पूरी कोशिश कर रहा था।
अब तक अन्य पेशेंट को ऑक्सीजन सिलेंडर लगाए जा चुके थे।वो सभी सामान्य हो चुके थे। शशांक को अरुण के साथ प्रयास करते हुए लगभग एक घंटे से ऊपर हो गया था। अभी तक अरुण की ऑक्सीजन लेबल मेंटेन नहीं हो पा रहा था। डॉ शशांक पसीने से तरबतर हो चुके थे। वह किसी भी कीमत पर अरुण को कुछ होने नहीं देना चाहता था।
शशांक ने सिस्टर से कहा-“ अब तक वार्डब्याय सिलेंडर क्यों नहीं लाया?” “डॉक्टर साहब सिलेंडर खत्म हो चुके हैं।“ “कहीं और से इंतजाम करवाइए?”
“सर ! मैंने हेड सर डा. मखीजा को बोल दिया है। उन्होंने इंतजाम करने को कहा है।“
बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी बेटी के मासूम चेहरे के साथ सवाल पूछती निगाहें घूम रही थी। इतनी छोटी सी बच्ची………..अनाथ…….. नही..-नही ऐसा नहीं सकता। अभी अरुण की उम्र ही क्या है?
शशांक की हालत पस्त हो रही थी। अरुण का प्रोनिंग का सिलसिला चलता रहा। आखिर उसकी मेहनत रंग लाई । अरुण का ऑक्सीजन लेवल 92 पहुंच गया। तब तक वार्ड ब्याय भी आक्सीजन सिलेंडर ले आया। उसने तुरंत अरुण को लगाकर ऑक्सीजन मेंटेन कर दिया।
डॉ शशांक निढाल होकर कुर्सी पर बैठ गए। अब वार्ड में सब ठीक था। सभी मरीजों की हालत सामान्य थी । यह देखकर शशांक ने सुकून की सांस ली।
ड्यूटी से छुट्टी पाकर शशांक ने तुरंत किट को उतारा। अपने कमरे में आकर पेरासिटामांल खाकर सो गया।
दो दिन बाद शशांक अपनी नाइट ड्यूटी टाइम जब आईसीयू वार्ड में गया। वहां पर अरुण की जगह पर दूसरे मरीज को देख घबरा गया। सिस्टर से पेशेंट अरूण के बारे में पूछा।
शशांक के चेहरे पर छाई हुई घबराहट को देख, मुस्कराते हुए-“सर! आप का प्रयोग व मेहनत दोनों रंग लाई।वह बिल्कुल ठीक है। उन्हें दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया।“
वार्ड के सभी पेशेंट को देखने के बाद वह अरुण को देखने उसके वार्ड में पहुंच गया। अरुण के साथ उसकी पत्नी और दोनों बच्चे मौजूद थे।
शशांक को देखते ही अरुण उठ कर बैठ गया। पत्नी की आंखों में आंसू छलक आए। अरुण शशांक का हाथ पकड़ते हुए-“ डॉक्टर साहब ! मैं आपका शुक्रगुजार हूं। मैं तो जीने की उम्मीद खो चुका था। आपने मुझे जीवनदान दिया । आपका यह कर्ज…………।“
मैं कुछ नहीं हूं। मैं तो ऊपर वाले का भेजा हुआ एक बंदा हूं, जो मुझे करना चाहिए था ,वह मैंने किया। बस आप ठीक है यही मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है।
तब तक उसकी बेटी शशांक के हाथों को थामते हुए-“ डॉक्टर अंकल! आप बहुत अच्छे हैं। आप ठीक कहते थे मेरे पापा देखिए ठीक हो गए। आपने मेरे पापा को बिल्कुल ठीक कर दिया।“ परी ने विक्ट्री का साइन बनाते हुए-“ यू आर ग्रेट डॉक्टर अंकल !”
शशांक दोनों बच्चों को चॉकलेट थमा कर, उन्हें प्यार किया और बेहद सुकून की सांस लेकर वापस अपने वार्ड में आ गया। आज उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

स्वरचित मौलिक रचना
नमिता गुप्ता
लखनऊ

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