‘ बातों के महिसासुर…..’
इन बातों के महिसासुरों का अनर्गल प्रलाप सुन कर लगता है हमें देवी का रूप लेना ही पड़ेगा…..
‘ बातों के महिसासुर…..’
ये आयें हैं हमे बताने
अपने हिसाब से कपड़े पहनाने ,
जिंस फटी हो या सिली हो
दिमाग तो तुम्हारी सही हो ,
बाहों में स्लीव जुड़ी हो
तुम्हारे हिसाब से मुड़ी हो ,
कुर्ता कितना टाईट हो
इस बात पर भी फाइट हो ,
साड़ी में घूंघट का भी नाप हो
तुम्हारी सोच से साड़ी का भी माप हो ,
कपड़ों के बहाने जिस्म तुम तौलते हो
और बिना ज़बान पे लगाम के बोलते हो ,
किसने तुम्हें हमारे कपड़ों को यंत्र दिया
लोकतंत्र ने तुम्हें क्या यही मंत्र दिया ?
इतनी पैनी निगाह खुद अपने आप पर रखते
तो ऐसे गिरे हुये शब्द अपने मुँह से ना कहते ?
क्यों बार – बार हमारी आत्मा को कोंचते हो
ऐसा ही तुम अपनों के लिए भी सोचते हो ?
हम तो हर बार अपनी सहनशीलता बढ़ा लेते हैं
तुम जैसों को अपनी निगाहों से गिरा देते हैं ,
हम अपनी औक़ात अच्छे से जानते हैं
वक्त आने पर तुम जैसों को भी दिखाते हैं ,
क्यों तुम हमेशा आग में घी पर घी डालते हो
क्यों तुम हमारे अंदर की काली को जगाते हो ?
शिव नही हो जो हमारे क्रोध को शांत कर दोगे
बातों के महिसासुर क्या तुम देवी को मात दोगे ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 19/03/2021 )