* बातें मन की *
** गीतिका **
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बातें मन की कह डालो तुम, मन से आज।
नहीं रहेगा देखो छुपकर, कोई राज।
प्यार भरे शब्दों में होगी, जब फरियाद।
बिना बताए कर डालेंगे, सारे काज।
हो भरपूर भरा निज मन में, जब उत्साह।
मंजिल होगी पास जोश में ,हो परवाज।
बंद अधर आंखों से जब हो, कोई बात।
मन को अक्सर भा जाते हैं, प्रिय अंदाज।
वासंती ऋतु की महिमा है, अपरम्पार।
साथ प्रीति के सुमधुर सुन्दर, बजते साज।
झुकी नजर बढ़ते धीरे से, आगे पांव।
खूब भली लगती मुखड़े पर, आती लाज।
एक दूसरे के आपस में, सेतु समान।
युग युग से हैं चले आ रहे, सभी रिवाज।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १९/०२/२०२४