जीवन एक मकान किराए को,
जीवन एक मकान किराए को,
या मे रहिबे कोसुख काहे को?
ना जानै कौन दिना नोटिस आ जाबै,
नाही जानै,फिरहू घूमै इतराए सौ!!
या जीवन मे आना बेमानी थो,
करौ धरौ कछु नाही घूमै बौराए सौ!!
माटी को तन माटी मै मिल जावै,
चौथेपन मे काहे घूमे फिरै बौराए सौ!!
धन-दौलत सब यही छुट जावैगौ,
जब भीतर सै मन=पंछी उड जाए सौ!!
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरछित बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट ,कवि,पत्रकार 202 नीरव निकुज फेस=2 सिकंदरा,आगरा