बाढ़ का आतंक
** रूप घनाक्षरी **
~~
बाढ़ का आतंक जब छा रहा सभी जगह,
सबको डरा रहा है खूब बारिशों का शोर।
फटते ही जा रहे हैं बादल अनेक जब,
चलता नहीं है यहां आदमी का कोई जोर।
भौतिक विकास का है क्रम देखिए प्रबल।
बेवजह दिया स्वयं प्रकृति को झकझोर।
मूल्य हम चुका रहे छेड़छाड़ के वीभत्स,
देखने हमें है नित्य आफतों के चक्र घोर।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)