बाजार री चमक धमक
बाजार री शोभा देख’र, मनडो बिळमा जावै ।
जिण री जरुरत कीं कौनी, पण लोगां नै करता देख, चाहणा जगावै।
चाहना रै लारै आंधो हुयौ मिनख, बळदां ज्यूं खप जावै ,
रात अर दन घाणी रै फैरे, बिन ढम्यां चाळतो ही जावै।
आ बाजार री चकाचौंध यूं भरमावै ,
जरूरतां तो जाणै बिसर ही जावै ।
बाजार री हौड़ मांही, घोड़ा ज्यूं दौड़े ,
इण सारुं रिस्ता तकाक नै भी तोड़े ।।
बाजार सारुं इतो कर’या पछै भी कठै मानै ,
इक रो सुवाद लेतां थकां, दूजी कांनी जावै।
इण तरह सूं सुख भी इक छळावो हुय जावै,
इक स्वाद सूं धाप्या बगैर, दूजै मनडै भावै।।
बाजार री आ चमक, किण नै नीं धा’रै ह,
इण सूं तो आपानै, बस राम ही रुखाळै ह।
मनडा नैछो धार, खुब करो कमाई,
बाजार री आ दाव सूं पळो छुड़ाई।।
🙂🙂🙂🙂🙂🙂
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
बनेड़ा (राजपुर)