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16 Apr 2024 · 1 min read

बाजार री चमक धमक

बाजार री शोभा देख’र, मनडो बिळमा जावै ।
जिण री जरुरत कीं कौनी, पण लोगां नै करता देख, चाहणा जगावै।
चाहना रै लारै आंधो हुयौ मिनख, बळदां ज्यूं खप जावै ,
रात अर दन घाणी रै फैरे, बिन ढम्यां चाळतो‌ ही जावै।

आ बाजार री चकाचौंध यूं भरमावै ,
जरूरतां तो जाणै बिसर ही जावै ।
बाजार री हौड़ मांही, घोड़ा ज्यूं दौड़े ,
इण सारुं रिस्ता तकाक नै भी तोड़े ।।

बाजार सारुं इतो कर’या पछै भी कठै मानै ,
इक रो सुवाद लेतां थकां, दूजी कांनी जावै।
इण तरह सूं सुख भी इक छळावो हुय जावै,
इक स्वाद सूं धाप्या बगैर, दूजै मनडै भावै।।

बाजार री आ चमक, किण नै नीं धा’रै ह,
इण सूं तो आपानै, बस राम ही रुखाळै ह।
मनडा नैछो धार, खुब करो कमाई,
बाजार री आ दाव सूं पळो छुड़ाई।।

🙂🙂🙂🙂🙂🙂
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
बनेड़ा (राजपुर)

1 Like · 122 Views
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