बाकी है—-
अभी सफ़र के कंगन बज रहे हैं
अभी तो कागज़ मांग रहे हैं शब्द
अभी तो सब देख कर भी दृष्टि से परे
बचा हुआ है कुछ
अभी तो चुप से बहेंगी कई कविताएं
अभी तो प्रतीक्षा लिखेगी मेरी पीठ पर—
अलविदा
अभी तो जाग की देहरी पर देगी नींद दस्तक
अभी तो जीने के अभ्यास का अंत होना बाकी है
अभी तो मोह परिपक्व होकर छूटेगा
और भीग कर बारिशों का मान रखेंगे
अभी तो मौसमों ने मोहरे बिछाए हैं
अभी तो पत्थर रखे हैं—-अधतराशे
अभी तो बुतों में रंग भरना है
अभी तो कामनाओं को सुलाया है
अभी अधखुली पलकों में कुछ ख्वाब बाकी हैं
अभी कुछ उधार बाकी हैं मुझ पर
आँख में कुछ नमी बाकी है
अभी भी कुहासे के उस ओर कोई दिखता है
अभी उस स्पर्श का एहसास बाकी है
मैं जाने की रवायत को निभा न पाऊँ शायद
क्योंकि आखिरी खत के इंतज़ार की तरह
मेरा ये सफ़र —–
—– बाकी है |