बाँसुरी श्याम अपनी बजाते रहो
अच्छी लगती है मुझको सुनाते रहो
बाँसुरी श्याम अपनी बजाते रहो
चाह मेरी तुम्हें देखती ही रहूँ
बात दिल की कोई भी न लब से कहूँ
स्वप्न आँखों में मधुरिम सजाते रहो
बाँसुरी श्याम अपनी बजाते रहो
बन्द आँखों में रहती तुम्हारी ही छवि
चाँद निकले गगन में या फिर चमके रवि
यूँ ही मुझको मुझी से चुराते रहो
बाँसुरी श्याम अपनी बजाते रहो
प्यार में मैं तुम्हारे हुई बावरी
ऐसे रँग में रँगी हो गई सांवरी
नेह अपना यूँ मुझ पर लुटाते रहो
बाँसुरी श्याम अपनी बजाते रहो
06-01-2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद