* बाँझ न समझो उस अबला को *
जो गाये दूध देती हैं, उस की लात सहनी ही पड़ती है
कुछ न कुछ बात तो जरूर कहनी ही पड़ती है
जिस को लोग बाँझ समझ कर दुत्कार देते हैं
क्या कभी उस के दिल में ममता की कमी तुम को लगती है !!
बड़े अरमान होते हैं उस के , कि घर में बच्चे हों मेरे
सूना आँगन , सूनापन , खत्म कर देते हैं, वो न्यारे
बस उस प्रभु का रहम होने में देर जरूर होती देखी है
बस इसी बीच रिश्तें में दिवार खडी होती देखी है मैने !!
प्यार आँगन में पनपता रहे तो विधाता खुश हो जाता है
एक न एक दिन उस को भी उस अबला पर तरस आ जाता है
मेरा कहना है, उस को कभी दुत्कार के न रखना मेरे भाई
“अजीत” आने वाले समय में उस की गोद में तेरा प्यारा ललना है !!
मुझे तो यार यही नजर आता है >>>>>>>>>>>>>
अजीत तलवार
मेरठ