*** बाँझ न समझो ,उस अबला को **
जो गाये दूध देती हैं,
उस की लात सहनी ही पड़ती है
कुछ न कुछ बात तो
जरूर कहनी ही पड़ती है
जिस को लोग बाँझ समझ
कर दुत्कार देते हैं
क्या कभी उस के दिल में
उठते ज्वार किसी ने देखें हैं
ममता की कमी
सब को उसमें देखने को लगती है
पर, उस दिल पर क्या गुजरी
क्या किसी ने वो छवि देखी है !!
बड़े अरमान होते हैं उस के ,
कि घर में बच्चे हों मेरे
सूना आँगन , सूनापन ,
खत्म कर देते हैं, वो नन्हे मुन्ने
उस प्रभु का रहम होने में
देर जरूर होती देखी है
बस इसी बीच रिश्तें में
दिवार खडी होती देखी है !!
प्यार आँगन में पनपता रहे
तो विधाता खुश हो जाता है
एक न एक दिन उस को भी
उस अबला पर तरस आ जाता है
मेरा कहना है, उस को कभी
दुत्कार के न रखना मेरे भाई
“अजीत” आने वाले समय में
उस की गोद में खिलती हुई दुनिया देखी है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ