बहु घर की लक्ष्मी
बहु घर की लक्ष्मी यह शब्द बहुत दिनों से सुनने को मिल रहा है और हम लोग आसपास में हमेशा यह शब्द सुनते रहते हैं पर असल में बहु घर की लक्ष्मी कैसे होती है? क्या यह हमने कभी जानने की चेष्टा की? गांव-नगर में आम भाषा में हम सभी को हमेशा सुनने को मिलता रहता है। लोग कहते हैं बहु घर की लक्ष्मी होती है। तो आखिर बहु घर की लक्ष्मी कैसे होती है? किस प्रकार होती है? क्योंकि बहु तो घर में रहती है। कहीं कमाने जाती नहीं है। कुछ धन संपदा लाती नहीं है। तो फिर बहु घर की लक्ष्मी होती कैसे हैं? यही आज हम इस कहानी के माध्यम से जानेंगे कि बहु घर लक्ष्मी हैं कैसे?
जैसे कि हम सभी जानते हैं कि जब एक लड़की की शादी होती है और वह लड़की जब दुल्हन बन करके, किसी की बहु बन करके अपने ससुराल आती है, उस दिन से उसका सारा कुछ ससुराल ही होता है। बस मायके एक संबंध रह जाता है और वह अपनी मायके की पहुनी बनके रह जाती है।
जब एक दुल्हन बहु बन करके अपने ससुराल पहुंचती है तो उस घर के लोगों की बहुत आस होती है और वह लोग सोचते हैं कि अब तो घर में बहु के रूप में लक्ष्मी आई हुई है। आज से घर का सारा काम यही संभालेंगी अर्थात घर का चूल्हा चौकी वही बहु देखेगी। कब? किस? समय पर कौन सी भोजन बनेगा? सब उसी के गृहणी कार्य में चला जाता है।
इसी तरह से जब एक लड़की की शादी होती है तो वह दुल्हन बन करके अपने ससुराल पहुंचती है। वहां पर पहले से उनकी एक बड़ी देयादिन होती है। जिसे दीदी के रूप में पुकारती है साथ ही बड़ी देयादिन की चार बच्चे होते हैं। उस घर में बड़े भाई साहब होते हैं और सास-ससुर होते हैं।
घर पहले से ठीक-ठाक था, जैसे-तैसे चलता था। बड़े भाई साहब टेंपू चलाते थे। सास-ससुर और बड़ी देयादिन ये लोग अपने खेत खलियान का काम देखते थे। देयादिन के बच्चे पढ़ने स्कूल जाते थे। लेकिन जैसे ही रसोई घर का काम नई बहु को संभालने का मौका मिलता है उस दिन से रसोई घर का मेनू चार्ट में बदलाव हो जाता है। प्रतिदिन की खान-पान की विधि व्यवस्था में बदलाव हो जाता है। बच्चों सब की पढ़ाई-लिखाई की समय सारणी में भी बदलाव हो जाता है।
लेकिन फिर भी यह सवाल उठता है की बहु घर की लक्ष्मी और घर के रसोई मेनू चार्ट, खान-पान की विधि व्यवस्था, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की समय सारणी आदि में बदलाव से क्या तात्पर्य है?
एक दिन की बात है, शाम का समय है। नई बहु रसोई घर में खाना बना रही होती है साथ में उनकी बड़ी देयादिन हाथ बटा रही होती है और बच्चे बैठ करके पढ़ रहे होते हैं। तभी बीच-बीच में रसोई का काम बड़ी देयादिन को शौप करके नई दुल्हन बच्चों के पास बैठकर के उनकी पढ़ाई की देखरेख करने लगती है और कुछ-कुछ चीजें बताने लगती हैं। फिर अपने रसोई के काम करने चले आती है। इस तरह से वह रसोई का काम, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई दोनों देखते रहती है। अभी खाना बन ही रहा होता है कि इस बीच में बड़ी देयादिन प्रतिदिन के अनुसार सास-ससुर के लिए खाना परोसने के लिए आ जाती है। तभी नई बहु बड़ी देयादिन को खाना परोसने से रोकती है और कहती है; दीदी आज का खाना मैं परोसूंगी इसलिए पहले सारे खाना बन जाने दीजिए।
इस तरह से शाम को 8:00 बजे से पहले तक खाना बनाकर तैयार हो जाता है। उसके बाद आंगन में आमने-सामने बैठने के लिए बोरे की चटाई बिछा देती है और खाने पर घर के सारे बच्चे लोगों को बुलाती है और देयादिन से कहती है की; दीदी बड़े भैया, अपने देवर और ससुर जी को भी खाने पर बुलाईए। इस तरह से सभी लोग आते हैं, एक साथ बैठकर के खाना खाते हैं। ऐसी स्थिति घर में पहली बार देखने को मिली थी कि सभी
लोग एक साथ बैठकर के खाना खा रहे हैं। इससे पहले ऐसी स्थिति गांव के जग परोजन में देखने को मिलता था और फिल्मी दुनिया में भी।
घर के जब सारे बच्चे और पुरुष लोग खाना खा लिए उसके बाद फिर नई बहु अपनी बड़ी देयादिन, सास के लिए खाना परोसी और उन लोगों को भी एक साथ बैठा करके खिलाई। फिर उसके बाद वह खुद भोजन की। भोजन करने के तुरंत बाद देखी तो समय रात्रि के 9:00 बज रहे थे और इस समय टीवी पर सुधीर चौधरी का न्यूज़ चलता है तो सारे लोगों को टीवी वाले घर में बैठा दी, जिसमे घर के पुरुष, पढ़ने वाले सारे बच्चे आदि सभी एक साथ बैठकर के एक घंटे का सुधार चौधरी जी का न्यूज़ विश्लेषण देखें। न्यूज़ समाप्त होने के बाद सारे लोग अपने-अपने कमरे में सोने के लिए चले गए।
पहले दिन ऐसा देखकर के घर के सारे लोगों को अचरज सा लगा। घर के पुरुषों को भी, महिलाओं को भी और बच्चे लोगों को भी।
फिर अगले दिन सुबह में सबसे पहले नई बहु जगती है और सासू मां को, देयादिन को जगाती है। इसके साथ घर के सारे परिवार को जगाती है, सबको एक साथ देवता वाला घर में बैठाती है और खुद बैठ करके गायत्री मंत्र का पांच बार उच्चारण करती और साथ में कराती है। उसके बाद सारे लोग अपने-अपने नित्य दिन के कार्य में लग जाते हैं और नई बहु खाना बनाने लगती है। तब बड़ी देयादिन रात वाली बातें याद करके इंतजार कर रही होती हैं कि जब पूरा खाना बन जाएगा, तभी सारे लोग एक साथ बैठ कर के खाना खाएंगे। इतनाही में नई बहु बोली; दीदी बच्चे लोगन का मुड़ी आंग कर दीजिए और पढ़ने जाने के लिए तैयार कर दीजिए, तब तक हम नाश्ता तैयार कर देती हूं। नाश्ता तैयार होते ही बोलती है; दीदी बड़े भैया को नाश्ता लगा दीजिए जिससे नाश्ता करके समय से अपने काम पर चले जाएंगे और बच्चे लोगन के भी, जिससे वह समय से स्कूल चले जाएं। तब तक हम खाना बनाती हूं। इस तरह से सारे लोग सुबह का नाश्ता करके अपने-अपने काम पर चले जाते हैं। फिर आराम से नई बहु खाना बनाती है और वह, बड़ी देयादिन एक साथ खाना खाती है।
इसी समय नई बहु बड़ी देयादिन को समझाती है कि दीदी रात्रि में सारे परिवार के लोग एकत्रित होते हैं और कहीं जाना नहीं होता है। इसलिए एक साथ बैठकर के खाना ठीक रहता है। जबकि सुबह में ऐसा करना ठीक नहीं रहता है क्योंकि सबका अपना अलग-अलग काम है और सबका अपने-अपने काम का समय अलग-अलग है। इसलिए सुबह में नाश्ता जिसको जब जरूरत पड़े करके वह अपने काम के लिए निकल जाए, ऐसी व्यवस्था हम लोगों को करनी चाहिए। हां और जानती है रात में एक साथ बैठकर खाने से क्या फायदा होता है? क्योंकि सारे लोग दिन भर अपने-अपने काम पर से आते हैं और एक साथ जब बैठ करके परिवार के साथ खाना खाते हैं तो किसी को किसी तरह की समस्या रहता है तो वह परिवार के सामने कहते है तो उस समस्या का समाधान परिवार के सारे लोग मिलके करते हैं और इस तरह से किसी तरह का किसी के मन में मतभेद नहीं रहता है।
इस तरह से अब प्रत्येक दिन नई बहु घर का काम करने लगी और इसी विधि व्यवस्था के तहत सारे काम संभालने लगी। जिसमें सायं में समय से बच्चों को पढ़ने के लिए कहना, पढ़ाना और रात्रि के 8:00 बजे एक साथ परिवार को खाना खिलाना। फिर सास और देयादिन को खाना खिलाना, फिर अपने खाना। उसके बाद रात्रि के 9:00 बजे सुधीर चौधरी का टीवी पर न्यूज़ परिवार के साथ देखना।
इस तरह से अब सायं का रूटीन और सुबह का रूटीन बन गया था, घर के लोगों को भी यह रूटीन समझ में आ गया था।
अक्सर घरों में यह देखा जाता है कि जब नई बहु घर में आती है तो किसी को कोई काम आरहाती नहीं है बल्कि खुद करती है और दूसरे लोग उनके काम आरहाते हैं लेकिन यहां पर नई बहु खुद कर रही है और अपनी बड़ी देयादिन को आरहा रही हैं। यहां काम के लिए आरहाना किसी तरह का आदेश नहीं बल्कि एक तरह से आग्रह किया जा रहा है।
इसी बीच में एक दिन नई बहु के ससुर अपने दुवार पर बैठे थे तभी उनके गांव के छोटे भाई आकर के बैठे और आपस में गपशप बातें करने लगे। बातें करते-करते गांव के जो व्यक्ति आए थे वह बोले; मदन भैया आज हम आप ही के घर खाना खाएंगे। तो वह बोले ठीक है तो कुछ देर ठहरना पड़ेगा। फिर वह गांव का व्यक्ति बोले; ठीक है जितना देर ठहरना होगा उतना देर ठहरेंगे पर आज आप ही के घर खाना खाएंगे। शायद वह पीये हुए थे इसलिए बातें ऐसे कर रहे थे। फिर भी जैसे भी हो…
तभी आंगन से खाना खाने की पुकार आई। सभी लोग खाने के लिए प्रत्येक दिन की तरह आंगन में बैठ गए। इनके साथ गांव वाले व्यक्ति भी बैठ गए। उनको तो इस तरह का व्यवस्था देखकर की मन में अचरज सा लगा और सोच में पड़ गए। क्योंकि वह भी कभी अपने घर ऐसे खाना नहीं खाते थे। सभी लोग खाना खाए और खाना खाने के बाद जब उठने का समय आया तब गांव वाले व्यक्ति ने बोले की; मदन भैया आपके घर की विधि व्यवस्था देखकर के मुझे बहुत ही अच्छा लगा पर इसके पहले हमने कई बार आपके यहां भोजन किए हैं पर ऐसे कभी नहीं किए हैं। यह विधि व्यवस्था कब से हुआ है? लग रहा है कि आपकी नई बहु की कमाल है। तब तक घर वाले बोले; हां यही बात है। तभी गांव वाले व्यक्ति बोले; यह आपके घर की बहु एकमात्र बहु नहीं बल्कि घर की लक्ष्मी है। इस तरह से अगर सारे घर की बहु घर की विधि व्यवस्था को सुदृढ़ कर देती तो आदमी जितना में भी रहता, उतना में जिंदगी का असली सुख प्राप्त कर पाता। आज से मैं भी अपने घर की विधि व्यवस्था सही करने का प्रयास करूंगा और आपकी बहु की कामों का जिक्र अपने घर की बहु के सामने करूंगा। जिससे मेरे घर की बहु भी इस तरह की सीख हासिल करें और ऐसी विधि व्यवस्था बनाए। उन्होंने यहां तक कहा कि सच में जीवन का असली सुख आपके परिवार में है क्योंकि आपकी बहु घर की लक्ष्मी है।
इस तरह प्रत्येक दिन का सुबह और शाम का भोजन मेनू में परिवर्तन करके बनाना। समय से भोजन सबको मिल जाना। सुबह में सारे लोग एक साथ गायत्री मंत्र के साथ भगवान की प्रार्थना करना। समय से सारे लोगों को अपने काम पर चले जाना। समय से काम करके घर चले आना। जिससे अब प्रत्येक दिन घर के सारे सदस्य जो भी कमाते थे पैसा एकत्रित करने लगे। प्रत्येक दिन भोजन अलग-अलग तरह के करने से सारे लोग स्वस्थ रहने भी लगे। जिससे किसी को किसी तरह की बीमारी जल्दी नहीं होती थी। जिससे शरीर की स्वस्थता अच्छी रहने लगी। सारे परिवार सुखी संपन्न रहने लगे और पैसा की बचत होने लगी। परिवार में कभी किसी भी बात को लेकर के मन मोटाव नहीं होता था।
इस तरह से दिन पर दिन घर की तरक्की होने लगी और घर के सारे सदस्यों को यह महसूस होने लगा की सच में नई बहु हम सभी के लिए घर की लक्ष्मी है, जिसके आने से घर की सारी विधि व्यवस्था बदल गई है और हम दिन पर दिन तरक्की करने लगे हैं।
इस तरह से आपको समझ में आ गया होगा कि बहु को घर की लक्ष्मी क्यों कहा जाता है? और किस मायने में बहु घर की लक्ष्मी होती है? क्योंकि वह घर से बाहर कमाने नहीं जाती है। एक रुपया कहीं से काम करके नहीं लाती है, फिर भी वह घर की लक्ष्मी होती है। इसलिए क्योंकि वह सही समय पर खाना बना देती है, जिससे सारे लोग खाना खाकर के नियमत: अपने काम करने चले जाते हैं। वही रात में जब सब एक साथ बैठकर खाना खाते हैं जिससे घर परिवार में प्रेम बना रहता है। वहीं जहां घर की ऊर्जा समाप्त हो गई रहती है, वहां एक नई ऊर्जा लेकर आती है। इस तरह से एक रुपया ना कमाते हुए भी हजारों-लाखों रुपये कामवाती और बचत घर में कराती है। जिसके वजह से सारे लोग ‘बहु घर की लक्ष्मी’ होती है इसी से संबोधित करते हैं।
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@जय लगन कुमार हैप्पी
बेतिया, बिहार।