बहुमत पाने को सब जायज़
बहुमत पाने को सब जायज़
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बहुमत पाने को जो छोड़ें,नैतिकता का दामन यारो।
वो कैसे बरसाएँ मोहक,जन रिश्तों का सावन यारो।।
जनता भोली पिसती रहती,
ताने देती फिर चुप रहती,
इक थैली के चट्टे-बट्टे,
इन नेताओं को बस सहती,
सरकारें आती जाती रहती,खुद को रखना पावन यारो।
भ्रातृभाव को जोड़े चलना,ये जीवन का मधुबन यारो।।
नेता खातिर लड़ना छोड़ो,
आपस में बस मन को जोड़ो,
पढ़ो लिखो निस्वार्थ बनो तुम,
बुरे भाव का उठ मुँह तोड़ो,
हाथ जुड़ें तो साथ बढ़ेगा,झूमेगा धरा-गगन यारो।
साथ तुम्हारा हर लाएगा,सब ख़ुशियाँ घर-आँगन यारो।।
पढ़ो विरोधाभास अलंकार,
इन नेताओं का ये विचार,
ऊपर से आभास नया है,
अन्दर से आभास इन्कार,
बगुला भक्ति करें हैं हँसके,हारें इनसे सन्तन यारो।
बचे रहो ये भूलभुलैया,क्यों लड़ते इन कारण यारो।।
पक्ष-विपक्ष सिर्फ़ नाम के हैं,
एक-दूजे के काम के हैं,
सत्ता से सबके समझोते,
यही तो दिन आराम के हैं,
आँखों से पट्टी खोलो तुम,कर सच का अभिनंदन यारो।
ये जीवन पर भेद नहीं है,ये रिश्तों का चंदन यारो।।
आर.एस.प्रीतम
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