बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।
बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।
रज कण से चहुँ दिश सोंधी सी गंध सुहाई
दग्ध धरा प्रमुदित हो जैसे हो मुस्काई
दादुर बोले मोर नचे चल दी पुरवाई
काली घटा घिरी ज्यों दिन में रात है
बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।
खिले पुष्प पादप पल्लव सब तरु हैं झूम रहे
मधुप मगन मदमस्त, मनोरम कलिका चूम रहे
सावन मनभावन संदेश ले वारिद घूम रहे
रिमझिम बरसत मेघ धरा पर खुशीयों की बारात है
बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।
अब न रहे ये धरा प्यासी
अब न कहीं पे छाये उदासी
आओ बच्चो नाव बनाओ
पानी में इसको तैराओ
सब मिलजुल कर खुशी मनाओ
कुछ तो इसमें बात है
बहुत सुहानी लगती ये बरसात है।
अनुराग दीक्षित