बहुत दाम हो गए
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बहुत दाम हो गए
बौनेजी ने पाई कुर्सी उनके उचे दाम हो गए,
भाषा पर बढ़ गई चाशनी शब्द रसीले आम हो गए।
गांजा छोड़ा छोड़ी ताड़ी
अब वे संत कबीर हो गए
दर पर्दा है पाएं दौलत
दिखते ऐसे जैसे फकीर हो गए,
छाई रहती हरदम मस्ती भक्तों के वे राम हो गए।
दुनिया भर की सुख सुविधा उनके चारों ओर घूमती संतो जैसा पहने बाना जनता उनके चरण चूमती, तूती उनकी बोला करती बापू सीताराम हो गए।
जाते रहते थे कोठे पर,
अब संसद को शोभित करते
नई अदाओं के बूते पर जनता को संबोधित करते
क्या किस्मत ने पलटा खाया देश में वे सुनाम हो गए।
बहुत दम हो गए बहुत दाम हो गए।
:राकेश देवडे़ बिरसावादी