बहुत तेज़ जब से ये धारे हुये हैं
बहुत तेज़ जब से ये धारे हुये हैं
बड़ी दूर हमसे किनारे हुये हैं
लगे अश्क़ आँखों से बहने ज़रा अब
निहाँ दर्दे-दिल के इशारे हुये हैं
कभी पास हम ही नहीं जा सके थे
कभी दूर हम से सहारे हुये हैं
किसी और की राह के ख़ार अब तो
मुक़द्दर में लिक्खे हमारे हुये हैं
कभी हमने ताका अगर आसमाँ को
तो नज़रों से ओझल सितारे हुये हैं
बिना छत बिना घर बिना रोटियों के
कहाँ मुफ़लिसों के गुज़ारे हुये हैं
तेरे दर पे मौला वो हाथों को अपने
पता क्या कि कब से पसारे हुये हैं
बड़ी मेहनतों से बड़ी ही लगन से
वो किरदार अपना संवारे हुये हैं
न ‘आनन्द’ को जीत की आरज़ू है
मुहब्बत के मारे तो हारे हुये हैं
– डॉ आनन्द किशोर