बस हौसला करके चलना
दूर-दराज क्षितिज में ,
मानो छिपते हुए सूर्य के।
आगोश में लुप्त हो जाना ,
कतार मय उडते पंछियों का ।।
दाना – दुनका चुगकर रैन बसेरे को ,
अपने घोंसले मे परतना ।
आनद मय सपनो की ,
उडान लिये उडते पंछी ।।
चहक- चहक कर आनंदित कर रहे ,
हवाओ को पर घर है इनका ठिकाना।
सोचता हूँ इन्सान हूँ ,
मै विराने में चला तो ।।
क्या छोड दूं मंजिल डगर को ,
सिकवा – शिकायते जिन्दगी से
पर क्या दगा करु मै जमीर से,
आस है बस आस है ।
यू नही छोडू पथ चाहे ,
पथरीला कंकरीला काँटो भरा ।
तन-मन से जोर-आजमाईश कर ,
प्राप्त कर मंजिल।।
बस हौसला करके चलना।
सतपाल चौहान।