‘बस! वो पल’
याद तुम्हारी आने का पल
ख़ुद से ऑंख चुराने का पल!
रिश्तों के ठुकराने का पल
बस दृगबिन्दु छुपाने का पल!
बिसरा दो टूटन की बातें
ढूॅंढों हास सजाने का पल!
लगा बड़ा अनमोल हमेशा
वादों को दोहराने का पल!
पतझड़ देता सहज भाव से
नव-कोपल को छाने का पल
मन में रखकर मत खो देना
मिलकर गले लगाने का पल!
लगता कितना भला ‘लहर’ को
सागर में घुल जाने का पल!
रश्मि ‘लहर’