बस यही ख्वाहिश….
दिल की कसक, चिंगारी सी सुलगती है
बुझ- बुझ के हर बार, फिर से जलती है…
कभी आँसू, कभी दर्द, कभी आह, कभी बेरुखी
बन -बन के खुशी, साँसों में खटकती है…
कतरा- कतरा तेरी मोहब्बत में बह गए
क्यों नहीं तुझे ही, मेरी खबर पहुँचती है…
या रब किसी दुश्मन को भी इश्क ना हो
ये दुआ मेरे दिल से, दिन-रात निकलती है…
चंद लम्हों में जी लें तमाम जिंदगी ‘अर्पिता’
धड़कन के साथ, बस यही ख़्वाहिश चलती है…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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