बस ग़ज़ल उनकी निशानी रह गई
ग़ज़ल
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??
और गुल की तो कहानी रह गई
बस चमन में रात रानी रह गई
??
दिल में छवि कोई पुरानी रह गई
आंखों में दरिया तूफानी रह गई
??
निकले हैं अरमां बहुत दिल के मगर
एक हसरत तो—- सयानी रह गई
??
कहते थे तुमको —- भुला न पायेंगे
बात सारी पर —— जुबानी रह गई
??
सो गये अरमान — सारे अब मेरे
फर्ज़ ही बस अब निभानी रह गई
??
इश्क़ है उनसे ये है उनको पता
बात बात उनको बतानी रह गई
??
फर्ज़ को अपने निभाता कौन है
लोगों की बस हक़ बयानी रह गई
??
मीर गालिब तो गये जग छोड़ कर
बस ग़ज़ल उनकी निशानी रह गई
??
खाब तो कबके मिटे “प्रीतम” मेरे
वो मिलेंगे —– बदगुमानी रह गई
??
प्रीतम राठौर भिनगई
श्रावस्ती (उ०प्र०)