बस किताबों में लिखी रह जाएँगी चौपाइयाँ
एक दिन फट जायेगी कबिरा की सारी पोथियाँ
तुलसी सभी की नज़र में बन जायेगा बहुरूपिया
वे विवेकानन्द,गाँधी और गौतम मूर्ख थे
ये मानसिकता निगल लेगी संस्कृति की बोटियाँ
जूतियाँ होंगी न कोई सिर कहीं मिल पाएगा
अपना ही सिर होगा और अपनी ही होंगी जूतियाँ
नेता बने जो आज हैं वो सबके सब हैं भुखमरे
छीनकर खा जायेंगे जनता की सूखी रोटियाँ
वादे न केवल टूटेंगे…वे जाएँगे तुड़वायेंगे भी
बाँध देंगे जबरन ही चाणक्य की सब चोटियाँ
सब पुराने लेखकों की रागिनी थम जायेगी
तुलसी,बिहारी,जायसी बन जाएँगे परछाइयाँ
उठ जायेगी अर्थी पुरानी सब विधाओं की
बस किताबों में लिखी रह जाएँगी चौपाइयाँ