बस एक ख़ामोशी।
बस एक ख़ामोशी फिर घिर आयी है।
चलते-चलते कही दूर तलक रास्ता फिर भटक आयी है।
थी किसी के इंतज़ार वहा मौन खड़ी।
फिर राही मिल गया और वो उसके सँग हो गयी।
कहने को तो इंतज़ार लंबा था।
पर ख़ामोशी की सन्नाटे सँग कितने रोज कटती।
आखिरकार ख़ामोशी को भी तो टूटना था।
बस फिर क्या था पल भर मे ख़ामोशी का सन्नाटे सँग साथ छूट गया।
अकेले होने के दर्द से सनाटा चारो तरफ पसर गया।
न फ़िज़ा चली न पत्ता हिला बस सन्न-सन्न सनाटा रोता रहा।
#रमन(इश्क़वाज़)