बस इतना दिलवा दो भाई (चौपाई छंंद)
रोटी कपड़ा और दवाई,
बस इतना दिलवा दो भाई
मंदिर मस्जिद काम न आए
भूख हमें है जब तड़पाए
काहे को हम करें लड़ाई
इतना तो समझा दो भाई
ठंढी जब है जोर लगाती
जात पूछ कर नही सताती
नेताओं की वही लड़ाई
बात किसी के समझ न आई
दवा नहीं क्यूँ दारू पाते
बाबू अब तुम क्यूँ पछताते
बिजली पानी और पढ़ाई
बस इतना दिलवा दो भाई
दिपावली क्यों मुंह चिढ़ाती
कातिल का ही साथ निभाती
नेता जी की गाड़ी आई
दौड़ो भागो करो लड़ाई
फिर पानी को तड़पो ऐसे
बिन पानी के मछली जैसे
आज दिया फिर शोर सुनाई
सुन के जिसे वो रोक न पाई
देखो अब फिर दौड़े नेता
पर शिक्षा नही कोई देता
आज “जटा” यह बात न पूछो
इनकी अब औकात न पूछो
आज बने हैं ये रखवाले
पांच बरस जो डाका डाले
जटाशंकर”जटा”
१८-०१-२०२०