बस इतना की अब मन नही है
बस इतना की अब मन नही है
अब पहले जैसा जीवन नही है
बह रही है कश्ती मंज़िल पाने को
अब मंज़िल का कोई जिक्र नही है
भटक गयी कश्ती अपनी राह से
अब वैसी राह डगर नही है
टूट गया आशियाँ पंक्षी का
अब उस दरख़्त पर उसका घर नही है
गिर गया जमी पर आसमाँ से
अब उड़ने का उसमे जिगर नही है
जी रहे है यादों की कफ़स में अब
और इसके सिवा बचा कुछ नही है
मैकदा ही साथ निभाए जानी
हमे मय की आदत नही है
लूट लिया अपनों ने ही हमकों इस जहाँ में
अब भूपेंद्र अपनों की जरूरत नही है
भूपेंद्र रावत
11।10।2017