बसेरा
एक घर की तमन्ना है रहने को
जो सिर्फ मेरा हो कहने को
चार दीवारें और एक छत
बस इतनी सी है चाहत
खाली कमरे को मैं
अरमानों से भर दूंगी
दीवारों को अपनेपन
से सरोबार कर दूंगी
ना कोई सजावट,
ना कीमती सामान
एक तख्ती हो बाहर
जिस पर लिखा मेरा नाम
छनकर धूप आये
सुबह और शाम
खिड़की से दिखता हो
मेरा अपना आसमान
मेरी उम्मीदों का घर
जिसे अपना कह सकूँगी
ये है मेरा बसेरा
यहां मैं रहूंगी
चित्रा बिष्ट