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3 Feb 2023 · 1 min read

बसंत

ताटंक छंद

विषय बसंत
मात्रा – 16/14
अंत-222

रूप बसंती मधुर माधुरी, हृदय सभी मन भाया है।
नीलांबर पर छिटते बादल, छम- छम जल बरसाया है।

कांधे पर झूम ऋतुराज के, कुंतल जाल बिछाया है।
चमन की झूम डाली -डाली ,मुखड़ा खूब खिलाया है।

कली- कली नव लोचन खोले, घुंघट धीर धराया है।
बेला सुहानी मधुमास की, प्रीतम प्रेम जगाया है।

खग कलरव से उपवन गूंजे ,उमंग -तरंग जगाया है।
ठिठुरन के दिन भागे जग से, बसंत मौसम आया है।

लो प्रकृति अब रंग बदले हैं ,जग हरियाला छाया है।
सिमटी रह गई शीत ऋतु अब, जग जीवन हर्षाया है।

झूम गगन में चंद्र चांदनी, यामिनी तम घटाया है।
आ भानु भी स्वर्ण कलश संग, रंग सोन बरसाया है।

ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

Language: Hindi
239 Views
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