बसंत
बसंत पंचमी पर्व पावन ।
वाग्देवी का होता पूजन ।।
बसंत ऋतु होती प्रारंभ ।
प्रकृति करती उत्सव आरंभ ।।
मौसम रहता सुहाना ।
मधुर लगता पक्षियों का चहचहाना ।।
प्राणी उल्लासित हो जाते ।
नदियाँ, झरने मंगलगान गाते ।।
फसल लहलहाती ।
वायु , वृक्षों को सहलाती ।।
बसंत सबको सम्मोहित कर लेता ।
प्रकृति का ये, श्रृंगार कर देता ।।
एक युगल के श्रृंगारित जोड़े सी ।
हरियाली चादर ओड़े सी ।।
स्वच्छंद प्रृकति , लगती मनभावन ।
प्रकृति का ये रूप पावन ।।
बसंत ही केवल प्रकृति को सजाता ।
ये स्वच्छंदता का मौसम, न लजाता ।।
इसका कितनों ने गुणगान किया ।
और अपनी कलम को सम्मान दिया ।।
पर विरले ही, सीमा तक जा पाए ।
जिनने अन्त:स्थलों में कमल खिलाए ।।
बसंत श्रृंगार है प्रकृति का ।
ये उपहार है प्रकृति का ।।
बसंत का लो सब आनंद ।
स्वच्छंद स्वच्छंद स्वच्छंद ।।
– नवीन कुमार जैन