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1 Jul 2018 · 1 min read

बसंत छत्तीस

प्रथम प्रभात में मात पिता को नमन है शीश,
कर चरण स्पर्श मांगता गुरुवर से आशीष,
भगवान से मिला सदा आशीर्वाद,
हर अवसर पर दिया सुनाई हर्ष नाद,
हँसी खुशी गुजरे बसंत छत्तीस,
मित्रो संग खुश रहता जगदीश,
उर में रहता सदा एक ही चित्र,
जग को प्यारा लागे हर एक मित्र,
बचपन बीता मिट्टी और धूल में,
कितनी मधुर सुगंध है उस फूल में,
हर घर प्यारा है मेरे गांव में,
अपनो सा दुलार पेड़ो की छांव में,
घर आंगन में बह रही प्रेम की सरिता,
मुझको बड़ा आनंद देती मेरी कविता,
अंतर्मन से निकलते शब्दो के भंडार,
करता हूँ सम्मान सबका नर हो या नार,
कोसो दूर है मुझसे मिथ्या आडंबर,
सुबह शाम देखता हूँ सुनहरा अम्बर,
चलता जाता हूँ पाने मंजिल,
प्रसून देख प्रसन्न होता दिल,
।।।जेपीएल।।

Language: Hindi
502 Views
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