बवंडरों में उलझ कर डूबना है मुझे, तू समंदर उम्मीदों का हमारा ना बन।
तन्हा शामों की तारीफ़ ना बन,
तकलीफें पसंद है मुझे, तू चैन की ताबीर ना बन।
खामोश गीतों के लब्ज़ ना बन,
दुआएं लगती नहीं मुझे, तू अनजाने में सही मेरा फ़र्ज़ ना बन।
नासूर से मर्ज़ों की दवा ना बन,
खुदगर्ज़ हीं रहने दे मुझे, तू खुद्दारी का मेरे सबब ना बन।
तूफ़ानी बारिशों की सुहानी सुबह ना बन,
परछाईओं में खोने दे मुझे, तू इस भीड़ में मेरा हमसफ़र ना बन।
भूली ख़्वाबों का मेरे असर ना बन,
नम एहसासों में सोने दे मुझे, तू जागती आँखों का मेरे नज़र ना बन।
भटकती राहों का मेरे शहर ना बन,
कारवाओं में हीं चलने दे मुझे, तू मेरा खोया हुआ वो घर ना बन।
अकेले चमकते हुए उस चाँद का सहारा ना बन,
टूटकर क्षितिज़ पर बिखरना है मुझे, तू मेरा आसमां सारा ना बन।
डूबती हुई कश्ती का मेरे किनारा ना बन,
बवंडरों में उलझ कर डूबना है मुझे, तू समंदर उम्मीदों का हमारा ना बन।
अधूरी साज़ों का मेरे तर्ज ना बन,
कहानियाँ भाती नहीं मुझे, तू आयतों में साथ लिखा नाम यारा ना बन।